Wednesday, June 16, 2010

hippocracy of our country

जल्लाद को मिली सजा-ए-मौत

मुंबई में 26 नवंबर 2008में हुए आतंकवादी हमले के लिए पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को बुधवार को मुंबई की स्पेशल कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है.....जी हॉ इस बार भारत की कानून संहिता ने एक जल्लाद को सजाए मौत दी है......एक ऐसा जल्लाद जिसके दिल में किसी भी हाल में दया नहीं थी.......छोटे छोटे बच्चों के सामने उनके माता पिता को मौत के घाट उतार दिया....कोई जल्लाद भी पानी पिलाने वाले अपने दुश्मन का अहसान जिंदगी भर माने लेकिन अजनल आमिक कसाब एक ऐसा निर्दई दिल वाला इंसान था जिसने पानी के लिए अपने सूखते गले को ठंडक पहुंचाने वाले को दुसरे ही पल गोलियों से छलनी कर उसे मौत के घाट उतार दिया......इक मासूम इंसान को पानी पिलाने की सजा मौत मिली.....और उसकी बुढ़ी मॉ और दो साल का बच्चा बस अपनी ऑखों के सामने इस मौत के मंजर को देखता रह गया ........ऐसा नहीं का 26/11 हमले में एक यही परिवार था जो बर्बाद हुआ....इस हमले ने तो पुरे देश को हिला कर रख दिया......न जाने कितने घर उजड़ गए ...कितने बच्चे अनाथ हुए और कितनों के सुहाग उजड़े....इस हमले में हमने अपने देश के कई वीर सपूतों को खोया.....26 नवंबर 2008 के हमले ने इस देश को ऐसा जख्म दिया की ये हमेशा ही नासूर बन कर दिल में टीस मारता रहेगा......कसाब के मौत की सजा का इंतजार पुरा देश कर रहा था और तकरीबन डेढ़ साल बाद 6 मई 2010 को वो दिन आ ही गया जब मौत के इस तांडव से जख्मी दिलों को ठंडक पहुंची.सीमा पार से आए मौत के इस सौदागर को कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई.....कसाब पर कुल 86 मुकदमे दर्ज किए गए थे और गत तीन मई को अदालत ने उस पर लगे सभी मामलों में उसे दोषी करार दिया.......लेकिन फैसला दो दिन के लिए टाल दी गई...और 6 मई को करीब तीन घंटे तक चली सुनवाई के बाद अदालत मे कसाब को चार मामलों में मौत की सजा सुनाई है और पांच मामलों में उम्र कैद की सजा सुनाई है.......भारत जैसे देश में जहॉ लोग अपने दुश्मन के दुख में भी शरीक होते हैं और शोक जाहीर करते हैं लेकिन कसाब की करतुतें इतनी घिनौनी थी की उसकी मौत की खबर सुन कर पुरे देश में खुशी की लहर दौड़ गई....देश भर में लोगों ने पडाखे फोड़े जश्न मनाए....लेकिन इल सारी बातों के बीच कई सवाल अनायास ही मन में घुमड़ जाते हैं. की क्या एक कसाब को फांसी की सजा देने से इस देश से आतंकवाद का खात्मा हो जाएगा.....कसाब को सजा-ए-मौत तो मिल गई लेकिन वो फांसी के फंदों में कब लटका होगा.....कसाब अगर हाई कोर्ट में अपील नहीं भी करता है तब भी उसकी सजा की पुष्टी बॉम्बे हाई कोर्ट से करानी होगी.....वैसे देश के अलग अलग जेलों में पहले से ही 308 अपाराघी मृत्युदंड का इंतजार कर रहे हैं......वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में 256 मामले ऐसे पड़े हुए हैं...जिनको निचली अदालत के फैसले के समर्थन का इंतजार है.....वहीं दुसरी तरफ कुल 52 लोगों ने राष्ट्रपति के समक्ष मौत की सजा के खिलाफ क्षमा याचना की अपिल की है...... यदि कसाब हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला करता है और सजा फांसी की ही रहने की सूरत में राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल करता है तो वह उस कतार में खड़ा हो सकता है, जिसमें संसद पर हमले का आरोपी अफजल गुरु खड़ा है और जिसका नंबर 27 वां है...... कसाब से पहले मोहम्मद अफजल गुरु को फांसी की सजा सुनाई गई थी..... अफजल गुरु को संसद पर हुए आतंकवादी हमले में मौत की सजा सुनाई गई थी। मौत की सजा के खिलाफ अफजल गुरु ने राष्ट्रपति के सामने क्षमा याचना की है......अडरवर्ल्ड डॉन टाइगर मेनन के भाई याकूब मेनन को मौत की सजा सुनाई गई थी और वर्ष 2006में मुंबई की आतंकवाद निरोधी विशेष अदालत द्वारा सुनाई गई इस मौत की सजा को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है.....वैसे कसाब के खिलाफ केस लड़ रहे सरकारी वकील उज्जवल निकम ने कसाब को मौत की सजा दिए जाने पर काफी खुशी जताई है......उनका कहना है की
पीड़ितों के परिवार को इस फैसले से संतोष होगा।' भारत पर हुए सबसे बड़े आतंकवादी हमले का मुकदमा लड़ने वाले निकम ने कहा, 'मामले में निष्पक्ष और खुले मुकदमे ने समूची दुनिया को संदेश दिया है कि भारत में हर व्यक्ति को, यहां तक कि एक खूंखार आतंकवादी को भी अपने बचाव के लिए भरपूर अवसर दिया जाता है.......
आइए एक नजर डालते हैं अजमल आमीर कसाब के इस कानूनी सफर पर:-
26/11 को हुए हमले की कारवाई जब पिचले साल के अप्रेल में शुरु हुई तो कसाब के खिलाफ 86 अलग अलग आरोप लगाए गए जिनमें भारत के खिलाफ युद्ध और हत्या के इल्जान सबसे अहम थे,.......मुकदमे के लिए एक विशेष अदालत का गठन किया गया ...मुबई के आर्थर रोड मे कसाब के लिए एक खास तरह का अंड़ा जेल बनवाया गया....जेल के अंदर ही अदालत की कारवाई की गई ...सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए ....सुनवाई के दौरान करीब 600 गवाहों को पेश किया गया और इन सब के लिए सरकार ने करोड़ो रुपए खर्च किए......सुनवाई के दौरान कई नाटकीए मोड़ भी आए ....अदालत की सुनवाई के शुरुवाती दोर में ही कसाब ने अपने नबालिक होने का दावा पेश किया....जो सरासर गलत निकला.....फिर मुकदमें की सुनवाई के दौरान पिछले साल के जुलाई में कसाब ने अचानक से अपना जुर्म कबूल कर फांसी की सजा की गुहार लगाई लेकिन जज ने उसकी दरख्वास्त को रद्द कर दी और कारवाई जारी रखने का आदेश दिया....मुकदमें का दुसरा नाटकीए मोड़ तब आया जब जज ने अभियुक्त कसाब के वकील अब्बास काजमी को ये कहते हुए बाहर कर दिया की काजमी मुकदमें की कारवाई में देरी कर के इसे तूल देना चाहते हैं.....बाद में काजमी ने भी जज और सरकारी वकील पर आरोप लगाते हुए कहा की ये उन्हें आतंकवादी का वकील कहते हैं और अदालत का माहौल उनके खिलाफ है....बाद में कसाब हर बार सुनवाई के दौरान अपने बयान बदलते रहा ....और काजमी के जगह उनके जूनियर वकील पवार को कसाब का वकील घोषित किया गया....और काफी ना नकुर के बाद पाकिस्तान ने बड़े ही नाटकिए ढंग से आखिरकार मान ही लिया की कसाब पाकिस्तानी नागरिक है.....और करीब डेढ़ साल बाद 6 मई को इस देश की कानून व्यवस्था ने लोगों की भावनाओं पर अपना विश्वास बनाए रखते हुए कसाब का हिसाब कर ही दिया...और मिल गई किलिंग मशीन को मौत की सजा...... खैर अदालत ने जिन गुनाहों के लिए कसाब को दोषी माना है, उनमें फांसी के अलावा कोई और सजा हो ही नहीं सकती..... लेकिन इन सब के बीच अभी भी ये सबसे बड़ा सवाल है की क्या कसाब को फांसी की सजा जो सुनाई गई है वो उसे मिल भी पाएगी या नहीं.....क्या इस देश के लोग जानवर से भी बदतर कसाब को फांसी पर झुलते हुए देख पाएंगे....या कसाब भी अफजल गुरु और मेनन की तरह मर्सी पीटिशन लेकर कतार में खड़ा दिखाई देगा और अफजल गुरु की तरह कसाब भी भारत की जनता के दिल में लासीर की तरह चुभता रहेगा......और बाद में हमारे राजनेता अपने जरा जरा से स्वराथ के लिए गाहे बेगाहे कसाब पर भी अपनी राजनीतिक कोटियां सेंकते रहेंगे........ वैसे इस बाद को हमारे राजनेता भी अच्छी तरह जानते हैं....हमारे गृहमंत्री जो खुद कानून के एक अच्छे ज्ञाता हैं...वो भी सवाल हुछे जाने पर अपनी मजबूरी जताते हुए यही कहते हैं..अगर कसाब क्षमा टाचिका डालता है तो कसाब की मर्सी पिटिशन पर 50 लोगों की याचिका के बाद ही विचार किया जाएगा... आखिर क्यों? पूरे देश की भावना को ताक पर रखकर कानून की दुहाई क्यों दी जा रही है? क्या सांसदों और मंत्रियों को अपना वेतन बढ़वाने के लिए अनिश्चितकाल तक राष्ट्रपति के दस्तखत का इंतजार करना पड़ता है? जब आतंकवादी इतना बड़ा कदम उठा सकते हैं तो क्या हम एक छोटा कदम भी नहीं उठा सकते?
चिदंबरम नामी और बेहद कामयाब वकील भी हैं। कानून के ज्ञाता हैं इसलिए यह भी जानते हैं कि कानून में क्या कमियां हैं और इन्हें कैसे सुधारा जा सकता है। क्या वह सरकार को इस बात के लिए तैयार नहीं कर सकते कि एक ऐसा विधेयक लाया जाए जिसके जरिए यह व्यवस्था बने कि विशेष मामलों में निपटारा (ट्रायल कोर्ट से लेकर राष्ट्रपति भवन तक) एक तय समयसीमा के भीतर की जाए? लेकिन भला हो इस राजनेताओं का जिन्हें कसाब का एक सेंसेटिव मुद्दा भी विपक्ष का मुद्दा लगता है….. फिर सवाल ये भी उठता है की इसकी गारंटी कौन लेगा की कसाब को फांसी से पहले छुड़ाने के लिए कोई प्लेन हाइजैक नहीं हो जाएगा?और शायद इसिलिए कसाब से हमें सीख लेनी चाहिए कि बेड़ियों में जकड़े भारत की इस कानून व्यवस्था के लिए कसाब एक आईना है..।

No comments:

Post a Comment